विश्वकर्मा पूजा 2025 :
भारत की संस्कृति और परंपराएँ विविधता से भरपूर हैं। यहाँ हर पर्व और त्यौहार अपने आप में विशेष महत्व रखता है। इन्हीं पर्वों में से एक है विश्वकर्मा पूजा। यह दिन उन सभी लोगों के लिए बेहद खास होता है, जो औज़ारों, मशीनों, निर्माण कार्यों, उद्योगों और कारखानों से जुड़े हैं। विश्वकर्मा जी को सृष्टि का प्रथम वास्तुकार और शिल्पी माना जाता है। यही कारण है कि भारत ही नहीं बल्कि नेपाल और बांग्लादेश जैसे पड़ोसी देशों में भी विश्वकर्मा पूजा का व्यापक रूप से आयोजन होता है।
इस लेख में हम आपको बताएँगे कि विश्वकर्मा पूजा क्यों मनाई जाती है, इसका इतिहास क्या है, 2025 में यह कब है, पूजा की विधि, महत्व और वैज्ञानिक दृष्टिकोण।

विश्वकर्मा पूजा 2025 की तिथि और समय:
हिन्दू पंचांग के अनुसार, विश्वकर्मा पूजा हर वर्ष भाद्रपद मास के सूर्य के कन्या राशि में प्रवेश करने पर (कन्या संक्रांति) होती है। इसे अधिकतर लोग 17 सितंबर को मनाते हैं।
तिथि – बुधवार, 17 सितंबर 2025
सूर्य प्रवेश समय (कन्या संक्रांति) – प्रातः 07:28 बजे
पुण्य काल – सूर्य प्रवेश से लेकर दिनभर
भगवान विश्वकर्मा कौन हैं?
पुराणों के अनुसार भगवान विश्वकर्मा देवताओं के शिल्पकार और वास्तुकार हैं।
इन्हें सृष्टि का प्रथम इंजीनियर और मशीनों, हथियारों तथा भवनों के निर्माता माना जाता है।
ऋग्वेद, अथर्ववेद और पुराणों में इनके कार्यों का विस्तार से वर्णन मिलता है।
स्वर्गलोक का इंद्रपुरी महल, भगवान शिव का त्रिशूल, भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र, और यमराज का कालदंड – ये सभी विश्वकर्मा जी की रचनाएँ मानी जाती हैं।
आधुनिक समय में इन्हें तकनीक, इंजीनियरिंग और कारीगरी के देवता के रूप में पूजा जाता है।
विश्वकर्मा पूजा का महत्व
औद्योगिक महत्व – इस दिन कारखानों, फैक्ट्रियों, दुकानों और मशीनों की विशेष पूजा की जाती है।
कार्य की सुरक्षा – मान्यता है कि विश्वकर्मा जी की पूजा करने से मशीनें और उपकरण सुरक्षित रहते हैं तथा कार्य में सफलता मिलती है।
श्रम का सम्मान – यह दिन मेहनतकश लोगों और श्रमिकों के सम्मान को दर्शाता है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण – इस दिन मशीनों की सफाई, देखभाल और मरम्मत करने की परंपरा है, जो वास्तव में स्वास्थ्य और कार्यकुशलता के लिए लाभदायक है।
विश्वकर्मा पूजा का इतिहास और परंपराएँ
प्राचीन काल से ही राजा-महाराजा, कारीगर और शिल्पकार विश्वकर्मा जी की पूजा करते आए हैं।
मौर्य काल और गुप्त काल में बड़े-बड़े महल, मंदिर और किलों के निर्माण से पहले विश्वकर्मा जी की आराधना की जाती थी।
आधुनिक समय में यह पर्व विशेषकर उद्योगों, कारखानों, फैक्ट्रियों, कार्यालयों और वर्कशॉप्स में मनाया जाता है।
बांग्लादेश और नेपाल में भी यह त्यौहार बड़े धूमधाम से मनाया जाता है, जहाँ श्रमिक समुदाय इसे अपने वार्षिक पर्व की तरह मानते हैं।
विश्वकर्मा पूजा की विधि (विश्वकर्मा पूजा 2025):
विश्वकर्मा पूजा घर, दुकान, कारखाना या कार्यालय में बड़े ही श्रद्धा भाव से की जाती है। पूजा विधि इस प्रकार है:
सफाई और सजावट
पूजा स्थल, कार्यालय, कारखाने और मशीनों की अच्छे से सफाई की जाती है।
फूल, रंगोली और बंदनवार से सजावट की जाती है।
कलश स्थापना और पूजा सामग्री
कलश, नारियल, पान, सुपारी, चावल, हल्दी, सिंदूर, फूल और प्रसाद का प्रबंध किया जाता है।
विश्वकर्मा जी की मूर्ति या चित्र को पूजा स्थल पर रखा जाता है।
पूजा क्रम
सबसे पहले भगवान गणेश का पूजन।
इसके बाद विश्वकर्मा जी का आह्वान कर मंत्रों के साथ पूजा की जाती है।
औजारों और मशीनों पर हल्दी, सिंदूर और अक्षत लगाकर फूल चढ़ाए जाते हैं।
हवन और प्रसाद वितरण
पूजा के बाद हवन किया जाता है और प्रसाद बांटा जाता है।
इस दिन कोई भी मशीन या औज़ार चलाना शुभ नहीं माना जाता।
विश्वकर्मा पूजा से जुड़ी मान्यताएँ
मान्यता है कि इस दिन भगवान विश्वकर्मा स्वयं पृथ्वी पर आते हैं और भक्तों को आशीर्वाद देते हैं।
इस दिन औजारों और मशीनों को आराम देकर उनकी पूजा करने से कार्यक्षमता बढ़ती है।
कई जगहों पर लोग इस दिन को श्रमिक दिवस की तरह भी मनाते हैं।
आधुनिक समाज में विश्वकर्मा पूजा(विश्वकर्मा पूजा 2025):
आज के समय में विश्वकर्मा पूजा सिर्फ धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक महत्व भी रखती है।
इंजीनियर, आर्किटेक्ट, मैकेनिक, तकनीकी विशेषज्ञ और मजदूर इसे उत्साह से मनाते हैं।
इस दिन सरकारी और गैर-सरकारी कार्यालयों में अवकाश भी दिया जाता है।
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वैज्ञानिक दृष्टिकोण से विश्वकर्मा पूजा
औद्योगिक उपकरणों और मशीनों को नियमित देखभाल की आवश्यकता होती है।
विश्वकर्मा पूजा के अवसर पर मशीनों की सफाई, ग्रीसिंग और मरम्मत की जाती है।
यह परंपरा वास्तव में मशीनों की आयु बढ़ाने और कार्य में सुरक्षा सुनिश्चित करने का एक व्यावहारिक तरीका है।
विश्वकर्मा पूजा से जुड़ी कहानियाँ
सुदर्शन चक्र की उत्पत्ति – कहा जाता है कि भगवान विष्णु ने समुद्र मंथन के समय विश्वकर्मा से सुदर्शन चक्र बनवाया था।
त्रिशूल और पुष्पक विमान – भगवान शिव का त्रिशूल और रावण का पुष्पक विमान भी विश्वकर्मा जी की ही रचनाएँ मानी जाती हैं।
स्वर्गलोक का निर्माण – इंद्रपुरी, द्वारका और हस्तिनापुर जैसे दिव्य नगर भी उनकी रचनात्मकता के उदाहरण हैं।
निष्कर्ष(विश्वकर्मा पूजा 2025):
विश्वकर्मा पूजा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है बल्कि यह श्रम, तकनीक और कारीगरी का उत्सव है। यह पर्व हमें यह संदेश देता है कि मेहनत, परिश्रम और तकनीकी कौशल का सम्मान करना चाहिए। चाहे इंजीनियर हों, मजदूर हों, कारीगर हों या वैज्ञानिक – हर कोई भगवान विश्वकर्मा के आशीर्वाद का पात्र है।
👉 2025 में 17 सितंबर को विश्वकर्मा पूजा का आयोजन करें और अपने कार्य, व्यवसाय व जीवन में समृद्धि, सुरक्षा और सफलता प्राप्त करें।