AI Generated Deepfake Content of Abhishek Aishwarya

AI Generated Abhishek and Aishwarya

AI-Generated Deepfake Content

परिचय

 Deepfake Content

बॉलीवुड कपल अभिषेक बच्चन और ऐश्वर्या राय बच्चन ने एआई‑जनरेटेड डीपफेक कंटेंट ( Deepfake Content ) के खिलाफ Google और YouTube पर ₹4 करोड़ के हर्जाने की मांग के साथ दिल्ली हाई कोर्ट में मुकदमा दायर किया है, जिसने डिजिटल राइट्स बनाम प्लेटफॉर्म पॉलिसीज़ की बहस को फिर से तेज कर दिया है. रिपोर्ट्स के अनुसार, दोनों ने पहले भी अपने पर्सनैलिटी राइट्स की सुरक्षा के लिए कोर्ट से राहत ली थी, और अब विशिष्ट रूप से डीपफेक/अनऑथराइज़्ड एआई कंटेंट पर प्लेटफॉर्म‑लेवल एक्शन की मांग रखी है. इस केस का फोकस सिर्फ टेकेडाउन नहीं बल्कि सेफगार्ड्स, मॉडरेशन और ट्रेनिंग यूसेज पर स्ट्रक्चरल रेमेडीज़ तक जाता है, जो टेक इकोसिस्टम के लिए टेस्ट केस बन सकता है.tv9hindi+2

केस क्या कहता है (AI Generated Deepfake Content )

फाइलिंग्स में कहा गया है कि YouTube पर “यौन रूप से स्पष्ट” या “काल्पनिक” एआई वीडियो और डीपफेक ने छवि‑हानि, मानसिक पीड़ा और पब्लिक डिसकोर्स में भ्रम पैदा किया, इसलिए प्लेटफॉर्म्स को कम्पेन्सेटरी डैमेजेज़ और स्थायी रोक के आदेश दिए जाएं. मीडिया रिपोर्ट्स यह भी बताती हैं कि याचिकाओं में सैकड़ों लिंक/स्क्रीनशॉट्स संलग्न हैं, जो उल्लंघनकारी कंटेंट के पैटर्न और स्केल को दर्शाते हैं. कुछ कवरेज में यह डिटेल भी आई कि 6 सितंबर को दाखिल दस्तावेज़ प्लेटफॉर्म‑होस्टेड कंटेंट के एआई‑ट्रेनिंग में संभावित उपयोग को लेकर विशेष चिंता दर्ज कराते हैं, जिससे उल्लंघन का प्रसार बढ़ सकता है.

deepfake allegation

इस केस का एक महत्वपूर्ण एंगल पर्सनैलिटी/पब्लिसिटी राइट्स है, क्योंकि स्टार्स की इमेज, वॉइस और लाइकनेस का अनाधिकृत उपयोग विज्ञापन, व्यू‑मॉनेटाइज़ेशन और वायरलिटी से सीधा जुड़ता है. पहले मिली कोर्ट राहत इस दिशा में एक संकेत थी कि सेलेब्रिटीज़ के पहचान‑आधारित अधिकारों को डिजिटल प्लेटफॉर्म युग में भी न्यायिक संरक्षण चाहिए. अब Google‑YouTube के खिलाफ हर्जाना और स्ट्रिक्टर रिस्ट्रेंट्स की मांग, इन राइट्स को क्रियान्वयन‑स्तर पर लागू कराने का अगला कदम मानी जा रही है.

प्लेटफॉर्म जिम्मेदारी बनाम फ्री स्पीच

याचिकाओं के अनुसार, सिर्फ रिपोर्ट‑टेकडाउन काफी नहीं, बल्कि कंटेंट अपलोड, सर्च डिस्कवरी, रिकमेंडेशन और री‑अपलोड प्रिवेंशन के लिए प्रैक्टिव सेफगार्ड्स की जरूरत है. रिपोर्ट्स में यह भी दर्ज है कि प्लेटफॉर्म पॉलिसीज़ और थर्ड‑पार्टी एआई ट्रेनिंग से जुड़े प्रावधान कंटेंट‑मिसयूज के प्रसार को अनजाने में बढ़ा सकते हैं, जिसे याचिकाकर्ता सीमित/प्रतिबंधित कराने की मांग कर रहे हैं. हाई कोर्ट ने मामले पर प्रारंभिक स्तर पर प्रतिक्रियाएं मांगी हैं, जिनमें Google से लिखित जवाब तलब होने की खबरें भी आई हैं, जो ड्यू‑प्रोसेस और फैक्ट‑फाइंडिंग के अगले चरण की ओर इशारा करती हैं.

क्यों यह मामला अहम है

यह केस क्रिएटर्स, ब्रांड्स, एजेंसियों और प्लेटफॉर्म्स के लिए एक नज़ीर बन सकता है, क्योंकि डीपफेक‑डिटेक्शन, कंटेंट‑ऑथेंटिसिटी और कॉम्प्लायंस के फ्रेमवर्क पर कोर्ट की टिप्पणियां पॉलिसी‑लेवल बदलावों को प्रेरित कर सकती हैं. सेलेब्रिटी केस होने के कारण पब्लिक‑अवेयरनेस हाई है, पर असल लाभ तब होगा जब सॉल्यूशंस स्केलेबल हों—जैसे ट्रस्टेड मीडिया संकेतक, वॉइस‑क्लोनिंग गार्डरेल्स और हैश‑मैचिंग‑आधारित री‑अपलोड ब्लॉक्स. क्रॉस‑प्लेटफॉर्म कोऑर्डिनेशन भी ज़रूरी होगा, वरना टेकेडाउन के बावजूद कंटेंट मिरर/री‑शेयर होकर फिर से उभर सकता है, जिसका उल्लेख याचिकाओं की चिंताओं में मिलता है.

what it means for users and क्रिएटर्स ( Deepfake Content )

For everyday users, deepfakes blur the line between truth and fiction, so relying on verified sources and platform labels becomes crucial to avoid amplification of harmful content. Creators and brands need stricter consent workflows, AI‑use disclosures, and legal readiness (notices, evidence logs, takedown SOPs) to protect identity, reputation, and commercial value. Platforms, in turn, may be nudged by courts to enhance pre‑upload checks, watermarking, and model‑training restrictions where rights‑holder consent is missing or disputed.jagran+2

आगे का रोडमैप

कानूनी रूप से, अंतरिम आदेश, मॉडरेशन‑इंप्रूवमेंट्स और संभावित सेटलमेंट्स—तीनों रास्ते खुले हैं, और कोर्ट की दिशा‑निर्देशी टिप्पणियां सेक्टर‑वाइड बेंचमार्क का काम करेंगी. इंडस्ट्री‑लेवल पर, कंटेंट‑ऑरिजिन मेटाडेटा, क्रिप्टोग्राफिक प्रूफ्स और क्रॉस‑प्लेटफॉर्म एस्कलेशन चैनल्स जैसे उपाय “पहचान और अनुमति” को एआई युग में मैनेज करने के व्यावहारिक टूलकिट सिद्ध हो सकते हैं. पब्लिक‑इंटरस्ट की कसौटी पर, यह केस सेफ‑टेक और फ्री‑स्पीच के बीच जिम्मेदार संतुलन की खोज है—जहां हेट, हार्म और होक्स के लिए “नो टॉलरेंस” का स्पष्ट संदेश जाए.

निष्कर्ष

अभिषेक‑ऐश्वर्या बनाम Google‑YouTube मामला उस मोड़ पर खड़ा है जहां अदालतें यह परखेंगी कि पर्सनैलिटी राइट्स, एआई‑पॉलिसीज़ और प्लेटफॉर्म‑जिम्मेदारी को साथ‑साथ कैसे लागू किया जाए. अगर इस केस से मजबूत प्रोटोकॉल्स और सेफगार्ड्स निकलते हैं, तो इसका लाभ सिर्फ सेलेब्रिटीज़ नहीं, बल्कि हर डिजिटल नागरिक और क्रिएटर इकोसिस्टम को मिलेगा. यह बहस आखिरकार विश्वास, पारदर्शिता और जवाबदेही की है—और वही डिजिटल फ्यूचर को सुरक्षित और समावेशी बनाती है!

आपकी क्या राय है इस बारे में कमेंट करके बताएं!

Tagged:

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *