छठ पूजा सूर्य देव और छठी मइया की उपासना का एक अत्यंत पवित्र एवं वैदिक पर्व है, जो कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। यह त्योहार मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में अत्यधिक श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जाता है, लेकिन आज यह भारत के विभिन्न महानगरों और विदेशों में बसे भारतीयों के बीच भी लोकप्रिय हो चुका है ।artofliving+1
Chhath puja का इतिहास
छठ पूजा का उल्लेख प्राचीन वैदिक ग्रंथों, विशेषकर ऋग्वेद में सूर्योपासना से जुड़ा हुआ पाया जाता है। इसे सभ्यता के सबसे पुराने पर्वों में गिना जाता है। ऐसा माना जाता है कि छठ व्रत की शुरुआत सतयुग से हुई, जब राजा प्रियव्रत और रानी मालिनी ने संतान प्राप्ति के लिए छठी देवी की आराधना की थी। इस आराधना के फलस्वरूप उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई, जिसके बाद इस व्रत की परंपरा शुरू हुई ।amarujala+1
महाभारत काल में भी छठ पूजा का उल्लेख मिलता है। कहा जाता है कि द्रौपदी ने पांडवों की कठिनाइयों से मुक्ति के लिए इस व्रत का पालन किया था। वहीं, दानवीर कर्ण, जो सूर्य के पुत्र थे, प्रतिदिन सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते थे—यह दर्शाता है कि सूर्योपासना और छठ का रिश्ता कितना प्राचीन है ।artofliving+1
रामायण के अनुसार, भगवान श्रीराम और माता सीता ने भी 14 वर्षों के वनवास के बाद अयोध्या लौटने पर कार्तिक शुक्ल षष्ठी को सूर्य देव की पूजा की थी। इस प्रकार, छठ पूजा का संबंध अनेक धार्मिक युगों और कथाओं से जुड़ा हुआ है ।amarujala+1
Chhath puja का धार्मिक महत्व
छठ पूजा सूर्य देवता और उनकी बहन छठी मइया (देवी षष्ठी) की आराधना का पर्व है। यह व्रत सूर्य देव के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने और परिवार की समृद्धि, स्वास्थ्य और दीर्घायु की कामना के लिए किया जाता है। लोक मान्यता के अनुसार, छठ का व्रत करने से संतान प्राप्ति और पारिवारिक सुख-शांति की प्राप्ति होती है। व्रती स्त्रियां अपनी संतान की कुशलता के लिए और पुरुष पूरे परिवार के कल्याण के लिए यह व्रत रखते हैं ।jagran+1
आध्यात्मिक दृष्टि से देखा जाए तो सूर्य की उपासना शरीर, मन और आत्मा को शक्ति प्रदान करती है। सूर्य किरणों का सीधा संपर्क शरीर में विटामिन डी के निर्माण में सहायक होता है और इनसे मानसिक शांति एवं ऊर्जा प्राप्त होती है। इसीलिए छठ व्रत को अत्यंत वैज्ञानिक और स्वास्थ्यवर्धक भी माना गया है ।hindi.opindia+1
छठ पूजा की अवधि और अनुष्ठान
छठ पूजा चार दिनों तक चलने वाला पर्व है, जिसमें हर दिन का विशेष धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व होता है ।translate.google+1
पहला दिन – नहाय-खाय:
इस दिन व्रती पवित्र नदी या तालाब में स्नान करके घर की शुद्धि करते हैं। इसके बाद सात्विक भोजन ग्रहण किया जाता है जिसे केवल व्रती ही खाते हैं। इस भोजन में लहसुन-प्याज का प्रयोग पूरी तरह निषिद्ध होता है।दूसरा दिन – खरना:
खरना के दिन व्रती दिनभर निर्जला उपवास रखते हैं। शाम को गुड़ की खीर, रोटी और दूध का प्रसाद बनाकर चंद्रमा के दर्शन के बाद प्रसाद ग्रहण करते हैं। उसके बाद यह प्रसाद सबमें बांटा जाता है।तीसरा दिन – संध्या अर्घ्य:
इस दिन व्रती शाम के समय नदी या तालाब किनारे जाकर डूबते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं। महिलाएं पारंपरिक साड़ी पहनती हैं और पुरुष भी व्रत की मर्यादा में रहते हैं। पूरा वातावरण लोक गीतों, छठ भजनों और श्रद्धालुओं की भक्ति से गूंज उठता है।चौथा दिन – उषा अर्घ्य:
छठ पूजा का अंतिम दिन होता है जब व्रती उगते सूर्य को अर्घ्य देते हैं और फिर व्रत तोड़ते हैं। इस अवसर पर परिवारजन एकत्र होकर मंगलकामनाएं करते हैं और प्रसाद वितरित करते हैं ।hindi.careerindia+1
छठ पूजा के प्रसाद
इस व्रत में प्रसाद अत्यंत शुद्धता से तैयार किया जाता है। प्रमुख प्रसादों में ठेकुआ (गेहूं, गुड़ और घी से बना), नारियल, केले, सेब, गन्ना, नींबू और सिजिंनि आदि शामिल होते हैं। ये प्रसाद न केवल स्वादिष्ट होते हैं, बल्कि परंपरा और पवित्रता का प्रतीक भी होते हैं ।hindi.careerindia
छठ मइया और सूर्य देव की कथा
छठ मइया को सूर्य देव की बहन माना गया है। पौराणिक कथा के अनुसार, सूर्य देव की बहन जीवनदायिनी शक्ति हैं जो संतान की रक्षा करती हैं। जो भी व्यक्ति छठ का व्रत सच्चे मन से करता है, छठी मइया उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं और जीवन में बाधाओं को दूर करती हैं ।jagran+1
छठ पूजा का सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव
छठ पूजा केवल धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि सामाजिक एकता और समानता का भी प्रतीक है। इस पर्व के दौरान समाज में जाति-पात या ऊंच-नीच का कोई भेद नहीं रहता। अमीर-गरीब सभी एक साथ गंगा घाटों, तालाबों और नदियों के किनारे एकत्र होकर पूजा करते हैं। यह पर्व सामूहिकता, सहिष्णुता और पर्यावरण संरक्षण का संदेश देता है ।artofliving+1
दिलचस्प बात यह है कि न केवल भारत में, बल्कि मॉरिशस, त्रिनिदाद, सूरीनाम और नेपाल जैसे देशों में बसे प्रवासी भारतीय भी छठ पर्व को पूरी श्रद्धा से मनाते हैं। यह दर्शाता है कि छठ पूजा केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति की वैश्विक पहचान बन चुकी है ।artofliving
Chhath puja की वैज्ञानिकता
छठ पूजा केवल आस्था का पर्व नहीं है, यह शरीर और प्रकृति के संतुलन का भी अद्भुत उदाहरण है। व्रत के दौरान सूर्य की प्रत्यक्ष उपासना से शरीर में ऊर्जा और सकारात्मकता का संचार होता है। मिट्टी और जल से जुड़कर व्यक्ति धरती की प्राकृतिक शक्तियों के संपर्क में आता है, जो उसे मानसिक और शारीरिक रूप से शुद्ध करता है ।hindi.opindia
निष्कर्ष
छठ पूजा भारतीय संस्कृति का अद्भुत प्रतिबिंब है, जो प्रकृति, अनुशासन, संयम और कृतज्ञता का पाठ पढ़ाती है। यह पर्व न केवल भगवान सूर्य और छठी मइया की आराधना का प्रतीक है, बल्कि मानव जीवन में आत्म-नियंत्रण, निस्वार्थ सेवा और समाजिक सौहार्द की भावना को भी बढ़ाता है। चार दिनों की कठिन साधना के माध्यम से भक्त अपने जीवन में प्रकाश, शांति और समृद्धि का स्वागत करते हैं।
इस प्रकार, छठ पूजा केवल एक त्योहार नहीं बल्कि जीवन की एक आध्यात्मिक यात्रा है — जो व्यक्ति को प्रकृति और ईश्वर के साथ गहरे स्तर पर जोड़ती है ।